बेतिया/अवधेश कुमार शर्मा : केंद्र सरकार ने लोकसभा में लड़कियों के विवाह की न्युनतम आयु सीमा 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। सरकार ने यह कदम देश में मातृत्व मृत्यु दर को कम करने और महिलाओ में आवश्यक पोषण स्तर बरकरार रखने के लिए किया है। महिलाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर सरकार ने जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स गठित किया। जया जेटली की अध्यक्षता वाली टास्कफोर्स ने लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु सीमा बढ़ाने का परामर्श दिया। उसमें उन्होंने तर्क दिया कि कम आयु में बेटियों के विवाह, उपरांत गर्भावस्था में जच्चा और बच्चा दोनों को बुरी तरह प्रभावित करता है। क्योंकि हम अल्पायु में लड़कियों के शरीर में पोषण का अभाव रहता है, उनमें पोषण पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता है।महिलाओं के विकास के बिना स्वस्थ समाज की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। युवा महिलाएं ही किसी भी राष्ट्र की भविष्य की आधार हैं। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संघ की जिला कार्यकर्ता सुरैया शहाब ने कहा है कि इस युग में लड़कियों के विवाह अल्पायु में करने से कई प्रकार की शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जिससे उनकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास में रुकावट पैदा होती है। अल्पायु में लड़कियों के विवाह से शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाती है। पूर्ण शारिरीक विकास नहीं होने के कारण विवाहोपरांत कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त होना पड़ता है, जो उनके शरीर के विकास और बच्चों के विकास में बाधक होती हैं। इसलिए यह बहुत आवश्यक था कि अभिभावक लड़कियों का अल्पायु में विवाह, समाज में उत्पन्न विभिन्न कारणों से कर देते हैं। जिससे आगे चलकर बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि लड़कियों का विवाह न्यूनतम 21वर्ष की आयु में करना है। केन्द्र सरकार का यह निर्णय एक स्वागत योग्य है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम होगी, इससे अल्पायु में विवाह करने वाले माता-पिता को भय पूर्वक सुकून अवश्य मिलेगा। सुरैया शहाब ने जनहित में जिला प्रशासन से मांग किया कि अविलंब इस संबंध में सभी विभागीय कार्यालयो को आदेश निर्गत कर बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में पहल सुनिश्चित करें।